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Showing posts from July, 2017
हर रोज नई सुबह के साथ हमारी नई उम्मीदें जन्म लेती है सुबह की अँगड़ाईयों से सुुुुरमई शाम तक आँखेें कई ख्बाब पिरोती हैैं । लेेेेकिन जीवन की जरुरतों  के बीच  ये ख्बाब के महल ढ़ह से जाते हैं  और कई सपने दम तोड़़ देेेते हैं । हम आम जिंदगी में चाहे अनचाहे जानेे कितने समझौते करते हैैं और जब  जिंदगी की शाम का एहसास होता है तब समझ आता है हमने अपना बहुमूूूूल्य समय दूसरों  को खुुुश रखने में  गँवा दिया ।अंततः  न  कोई  खुश हुुुआ और न ही शिकायतों की फेहरिस््त ही कम हुई ।अब  थोड़ा खुद को खुश करते हुए बढते हैंं ताकि शिकायतें भी कम हो और  उम्मीदें भी कम हो । जिंदगी के इस दौर का शुभारम्भ । अकेले चलना है बस चलते जाना है बिना  किसी सहारे के बिना किसी उम्मीद के । दरअसल जितना हम जिंदगी के गहराई में उतरते हैैं उतने ही हम अकेले होते जाते हैंं ।ये अकेलापन कभीसंवादहीनता की उपज होती  है तो   कभी बेेेेवजह शोरगुल की  । अंततः हम  सभी  का सफर अकेला  ही रह जाता है ।जन्म से मृत्यु  तक का सफर एक यात््र्रा है  जिसमे पड़ाव बहुुत आते हैं पर मंजिल नहीं। मंजिल तो बस एक ही है मोक्ष का परमा त्मा में विलीन होने का ।